घुसपैठिया कौन? – एक सवाल, जो फिल्म खत्म होने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ता

घुसपैठिया कौन? – एक सवाल, जो फिल्म खत्म होने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ता

Lucknow News: फिल्म की आख़िरी झलक जैसे ही पर्दे से गायब हुई, हॉल में बैठे लोग खामोश रह गए। परदे पर दिखाए गए तेंदुए की कातर आंखें अब भी उनकी सोच में तैर रही थीं। एनिमेटेड तेंदुआ, अपनी मासूम पर बेचैन आवाज़ में, पूछ रहा था– “घुसपैठिया कौन है?” अजीब बात यह थी कि जो लोग आम तौर पर जानवरों के पक्ष में खड़े नहीं होते, वे भी इस सवाल के सामने ठहर गए थे। उन्हें भी लगा कहीं हम ही तो असली घुसपैठिए नहीं?

घुसपैठिया कौन? – एक सवाल, जो फिल्म खत्म होने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ता

“घुसपैठिया कौन?”, जिसे लिखा है वरिष्ठ पत्रकार और लेखक सुधीर मिश्रा ने। इस कहानी की जड़ें एक पुराने किस्से में हैं जब गाजियाबाद की जिला अदालत में एक तेंदुआ घुस आया था। उसने कुछ लोगों को घायल किया, लेकिन उसके पीछे की कहानी कहीं ज़्यादा गहरी थी। असल में, जंगलों के इलाकों में इंसानों की लगातार बढ़ती दखल के बीच, यह तेंदुआ मानो फरियाद करने आया था कि जिन जगहों पर अब ऊंची-ऊंची इमारतें खड़ी हैं, वे कभी उसका घर थीं। इस विचार को व्यंग्य और संवेदनाओं के रंग में ढालकर, सुधीर मिश्रा ने कहानी गढ़ी, जिसे निर्देशक धीरज भटनागर और उनकी टीम ने जीवंत रूप दिया।

घुसपैठिया कौन? – एक सवाल, जो फिल्म खत्म होने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ता

लखनऊ के होटल हिल्टन में हुई पहली स्क्रीनिंग, 200 से ज्यादा लोग रहे मौजूद

लखनऊ के होटल हिल्टन में हुई पहली स्क्रीनिंग में शहर के दो सौ से ज़्यादा प्रबुद्ध दर्शक मौजूद थे। मंच पर मुख्य अतिथि उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक, विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश के समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण, वरिष्ठ आईएफएस अफसर मो. अहसन और संजय सिंह, और रंगमंच के स्तंभ सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ जैसे दिग्गज थे। उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने हल्के-फुल्के अंदाज में इंसानी प्रकृति की बढ़ती दखलंदाजी को रेखांकित किया। समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण ने बंदरों के साथ हमारे व्यवहार का उदाहरण देकर मनुष्य को ही असली घुसपैठिया बताया।

घुसपैठिया कौन? – एक सवाल, जो फिल्म खत्म होने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ता

फिल्म की कलात्मकता भी उतनी ही प्रभावशाली थी जितनी उसकी सोच। अभिनेत्री गुंजन जैन और रंगमंच कलाकार मृदुला भारद्वाज ने तेंदुए के सामने बराबरी का अभिनय किया। तेंदुए का एनिमेशन और उसे जीवंत बनाने का कमाल मुंबई में रह रहे हरदोई के राजीव द्विवेदी ने किया, जिनकी टीम ने पहले भी ‘मुगल-ए-आजम’ जैसी फिल्मों को रंगीन बनाने का काम किया है। निर्देशक धीरज भटनागर ने तेंदुए को अपनी आवाज दी, और फिल्म को गति दी। इस सफ़र में कई हाथ जुड़े, ब्रजेश मिश्र, नितिन भारद्वार, विनीता मिश्रा, रत्नेश सिंह, सुकृति सिंह, मोनिका साईं, संदीप यादव, डॉ. रवि भट्ट  और सबसे बढ़कर, प्रोड्यूसर समीर और नेही अग्रवाल, जिनकी पर्यावरण और पशु संरक्षण के प्रति संवेदना ही इस फिल्म की असली ताकत रही।

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