Mirai Movie Review: सिनेमा हॉल में जब पर्दा उठता है और स्क्रीन पर “मिराई” शब्द चमकता है, तो दर्शक को पता चल जाता है कि वे एक ऐसी यात्रा पर निकलने वाले हैं जहाँ भविष्य, वर्तमान और अतीत के धागे आपस में गुंथे हुए हैं। कार्तिक घट्टामनेनी के निर्देशन में बनी यह फिल्म महज एक मनोरंजन नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा की उस नई दिशा का प्रतिनिधित्व करती है जहाँ पौराणिक गौरव और आधुनिक तकनीक का मेल हो रहा है।
अतीत से भविष्य तक का सफर
फिल्म की शुरुआत ही उस महान क्षण से होती है जब महर्षि वेदव्यास अपनी माता सत्यवती से कहते हैं – “माता जो होने वाला है वो आपसे देखा नहीं जाएगा।” यह संवाद फिल्म की आत्मा में बस जाता है और दर्शकों को एहसास होता है कि वे महज एक कहानी नहीं, बल्कि एक दर्शन देखने जा रहे हैं। भविष्य की अपरिवर्तनीयता का यह सिद्धांत पूरी फिल्म की रीढ़ बनता है। जब कहानी सम्राट अशोक के कलिंग युद्ध के बाद के समय में पहुँचती है, तो दर्शक उस ऐतिहासिक मोड़ के साक्षी बनते हैं जहाँ युद्ध की विभीषिका ने एक सम्राट को बदल दिया था। फिल्म इस बात को बेहद खूबसूरती से दिखाती है कि कैसे अशोक ने आठ पवित्र ग्रंथों को अलग-अलग स्थानों पर छुपाया था, मानो वे भविष्य के खतरों को देख रहे हों।
पात्रों की दुनिया में प्रवेश
महावीर लामा के किरदार से जब पहली बार सामना होता है, तो दर्शक को थोड़ी निराशा होती है। एक खलनायक से जो डर और रोमांच की अपेक्षा होती है, वह यहाँ नदारद लगती है। लामा का चरित्र उस परंपरागत विलेन की तरह प्रभावशाली नहीं बन पाता जो दर्शकों के मन में खौफ बिठा दे। उनके साथ चलने वाला प्रोफेसर तो मानो सिर्फ आश्चर्य के भावों को प्रकट करने के लिए ही फिल्म में मौजूद है, जिससे कहानी की गति धीमी हो जाती है। लेकिन जैसे ही युका का किरदार सामने आता है, फिल्म में एक नई ऊर्जा का संचार होता है। लामा की यह विशेष शूटर ही वास्तव में उस खतरे का एहसास कराती है जिसकी फिल्म में आवश्यकता थी। उसके एक्शन सीक्वेंस और तेवर वही प्रभाव छोड़ते हैं जो एक प्रभावी विलेन से अपेक्षित होता है।
तेजा सज्जा के वेदा के रूप में जब दर्शकों से पहली मुलाकात होती है, तो मन में मिले-जुले विचार आते हैं। एक सुपरहीरो से जो शारीरिक गठन और प्रभावशाली व्यक्तित्व की अपेक्षा होती है, वह यहाँ अनुपस्थित लगती है। उनका मासूम चेहरा और सरल स्वभाव कहीं न कहीं उन्हें एक बच्चे जैसा बनाता है, जो शायद फिल्म के फैमिली ऑडियंस के लिए सकारात्मक पहलू हो सकता है।
तकनीकी चमत्कार की शुरुआत
फिल्म का पहला हाफ देखते समय दर्शक को लगता है मानो वे एक धीमी ट्रेन में सफर कर रहे हों। महावीर लामा जिस आसानी से पहले छह ग्रंथों को हासिल करता है, वह कहानी की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। यहाँ लगता है कि निर्देशक ने असली रोमांच के लिए दूसरे हाफ को बचाकर रखा है। पुलिस के किरदार को देखकर तो यह लगता है कि यह सिर्फ फिल्म की लंबाई बढ़ाने के लिए जोड़ा गया है। केवल एक हास्य दृश्य के अलावा पूरी फिल्म में पुलिस की कोई सार्थक उपस्थिति नजर नहीं आती, जो दर्शकों के समय की बर्बादी लगती है।
इंटरवल के बाद का जादू
लेकिन जैसे ही इंटरवल समाप्त होता है और दर्शक अपनी सीटों पर वापस बैठते हैं, फिल्म एक बिल्कुल नए रूप में सामने आती है। यहाँ से शुरू होता है वह सिनेमाई जादू जिसका इंतजार पूरे पहले हाफ से था। गरुड़ की एंट्री के साथ ही लगता है मानो स्क्रीन से पौराणिक शक्ति निकलकर हॉल में फैल गई हो। संपाति के वंशज गरुड़ के दृश्य इतने प्रभावशाली हैं कि दर्शक अपनी सांस रोककर देखते रह जाते हैं। यहाँ विजुअल इफेक्ट्स की गुणवत्ता हॉलीवुड के बराबर नजर आती है। बर्फीले गुप्त क्षेत्र के दृश्य इतने जीवंत हैं कि दर्शकों को ठंड का एहसास होने लगता है।
महावीर लामा के बचपन और युवावस्था का चित्रण देखकर पता चलता है कि निर्देशक के पास कहानी कहने का हुनर है, बस जरूरत थी सही समय पर सही तत्वों का इस्तेमाल करने की। इन दृश्यों में विलेन का जो रूप दिखाया गया है, वह वास्तव में डरावना और प्रभावशाली है।
आध्यात्मिकता का स्पर्श
फिल्म के सबसे शक्तिशाली क्षणों में से एक है जब तंत्र ग्रंथ के रक्षक के आश्रम के दृश्य आते हैं। यहाँ का वातावरण इतना आध्यात्मिक और पवित्र है कि दर्शकों को मंदिर में बैठे होने का एहसास होता है। मंत्रों के साथ बैकग्राउंड स्कोर का जो प्रयोग हुआ है, वह रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा करता है। लेकिन असली गदगदाहट तब होती है जब भगवान राम के कोदंड की एंट्री होती है। यह दृश्य इतना भावुक और शक्तिशाली है कि सिनेमा हॉल में अपने आप “जय श्री राम” के नारे गूंजने लगते हैं। यहाँ दर्शक सिर्फ एक फिल्म नहीं देख रहे होते, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव जी रहे होते हैं।
संगीत की जादूगरी
फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर उसकी सबसे बड़ी ताकत है। मंत्रों के साथ जो संगीत रचा गया है, वह दर्शकों को एक अलग ही दुनिया में ले जाता है। यह संगीत सिर्फ कानों को सुकून नहीं देता, बल्कि आत्मा को भी स्पर्श करता है। एक्शन सीक्वेंस में साउंड डिजाइन इतना परफेक्ट है कि हर मार-पीट का एहसास दर्शकों तक पहुँचता है।
पारिवारिक मूल्यों का संदेश
फिल्म देखते समय सबसे अच्छी बात यह लगती है कि यह बच्चों के लिए एक आदर्श मनोरंजन है। आजकल जब बच्चे पश्चिमी सुपरहीरो के दीवाने हैं, तब यह फिल्म उन्हें अपनी संस्कृति और पौराणिक वीरों से परिचित कराती है। बच्चों के चेहरे पर दूसरे हाफ के दौरान जो चमक आती है, वह इस बात का प्रमाण है कि फिल्म अपने मुख्य उद्देश्य में सफल है। माता-पिता के लिए यह राहत की बात है कि वे बिना किसी झिझक के अपने बच्चों के साथ यह फिल्म देख सकते हैं। यहाँ कोई अनावश्यक वल्गैरिटी या हिंसा नहीं है, बल्कि नैतिक मूल्यों और आध्यात्मिकता का संदेश है।
तकनीकी उत्कृष्टता की मिसाल
दूसरे हाफ में विजुअल इफेक्ट्स देखकर यह एहसास होता है कि भारतीय सिनेमा तकनीकी रूप से कितना आगे बढ़ गया है। गरुड़ के उड़ने के दृश्य इतने वास्तविक लगते हैं कि दर्शक उसके साथ उड़ने का एहसास करते हैं। बर्फीले पहाड़ों और गुप्त आश्रमों का चित्रण इतना जीवंत है कि लगता है मानो कैमरा वास्तव में उन स्थानों पर गया हो। सिनेमैटोग्राफी में जो गतिशीलता है, वह एक्शन सीक्वेंस को और भी रोमांचक बनाती है। कैमरा एंगल्स इतने परफेक्ट हैं कि हर दृश्य एक पेंटिंग की तरह खूबसूरत लगता है।
समय की बर्बादी का अफसोस
फिल्म देखते समय सबसे बड़ा अफसोस यह होता है कि अगर निर्देशक ने 25-30 मिनट काटकर इसे और कसा हुआ बनाया होता, तो यह एक मास्टरपीस बन सकती थी। पहले हाफ की धीमी गति और अनावश्यक दृश्य दर्शकों के धैर्य की परीक्षा लेते हैं। कुछ किरदार बिल्कुल बेमतलब लगते हैं और उनकी उपस्थिति सिर्फ फिल्म की लंबाई बढ़ाने के लिए लगती है। अगर संपादन में थोड़ी सी कठोरता बरती गई होती, तो यह फिल्म शुरू से अंत तक दर्शकों को बांधे रख सकती थी।
भावनाओं का रोलर कोस्टर
दूसरे हाफ में जब क्लाइमैक्स आता है, तो दर्शकों के दिलों में एक अलग ही उत्साह भर जाता है। यहाँ हर दृश्य एक जीत का एहसास कराता है। अच्छाई और बुराई के बीच का संघर्ष इतने प्रभावी तरीके से दिखाया गया है कि दर्शक अपने आप को वेदा के साथ लड़ता हुआ महसूस करते हैं। भगवान राम के कोदंड का प्रकट होना फिल्म का सबसे शक्तिशाली क्षण है। यह दृश्य सिर्फ विजुअल ट्रीट नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है जो दर्शकों को गदगद कर देता है।
भविष्य की संभावनाएं
फिल्म देखने के बाद यह एहसास होता है कि भारतीय सिनेमा में हॉलीवुड को टक्कर देने की पूरी क्षमता है। बस जरूरत है थोड़ी सी और बारीकी और धैर्य की। अगर कार्तिक घट्टामनेनी जैसे निर्देशक अपनी कमियों से सीखते हुए आगे बढ़ते रहे, तो भारतीय सुपरहीरो सिनेमा का भविष्य उज्ज्वल है। यह फिल्म उस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है जहाँ हम अपनी पौराणिक विरासत को आधुनिक तकनीक के साथ मिलाकर विश्वस्तरीय मनोरंजन बना सकते हैं।
“मिराई” देखना एक ऐसे सफर के समान है जो धीमी शुरुआत के बाद तूफानी रफ्तार पकड़ता है। पहले हाफ में जो धैर्य खोता है, दूसरे हाफ में वह कई गुना वापस मिल जाता है। यह फिल्म सिर्फ मनोरंजन नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति के गौरव का गान है। अगर आप अपने बच्चों को अपनी जड़ों से जोड़ना चाहते हैं, अगर आप तकनीकी चमत्कार देखना चाहते हैं, अगर आप आध्यात्मिकता का स्पर्श महसूस करना चाहते हैं, तो “मिराई” आपके लिए है। हाँ, थोड़ा धैर्य रखना होगा, लेकिन इंतजार का फल मीठा होगा। यह फिल्म उम्मीद जगाती है कि भविष्य में भारतीय सिनेमा और भी बेहतरीन पौराणिक सुपरहीरो फिल्में बनाएगा। “मिराई” सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है।