किशोर को जेल में नहीं रख सकते जब तक वह 21 साल का न हो जाए: High Court

किशोर को जेल में नहीं रख सकते जब तक वह 21 साल का न हो जाए: High Court

Prayagraj News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अपराध के आरोपी बच्चे को तब तक जेल में नहीं रखा जा सकता जब तक कि वह इक्कीस वर्ष का न हो जाए। कोर्ट ने कहा गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने पर याची ने दावा नहीं किया कि वह किशोर है। यह दावा पहली बार ट्रायल के लिए  आरोप तय होने के बाद निचली अदालत के समक्ष उठाया गया था। ऐसे में न्यायिक आदेश से की गई  प्रारंभिक हिरासत अवैध नहीं हो सकती है। लेकिन, अधिनियम की धारा 9(4) के तहत किशोर होने के दावे के बाद जेल में हिरासत में रखना अवैध होगा। किशोर के दावे के बाद बाल संरक्षण गृह में रखा जाना चाहिए।

कोर्ट ने इस तर्क को भी अस्वीकार कर दिया कि किशोर बंदी को जमानत अर्जी देनी चाहिए। जब आपराधिक न्यायालय में किशोर के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता तो जमानत अर्जी देने का औचित्य नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय तथा न्यायमूर्ति संदीप जैन की खंडपीठ ने किशोर पवन कुमार की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता मोहम्मद सलमान व नाजिया नफीस ने बहस की।

कोर्ट ने जेल अधीक्षक नैनी प्रयागराज को निर्देश दिया है कि याची को तत्काल रिहा करें। पुलिस कमिश्नर प्रयागराज याची को ट्रायल कोर्ट में पेश करें, अदालत धारा 9(2)के अंतर्गत अपराध के समय याची की आयु का निर्धारण करें।तबतक याची को निरोधक अभिरक्षा में रखा जाये। कोर्ट ने कहा याची की अपराध के समय आयु का निर्धारण कर अदालत किशोर न्याय बोर्ड को अग्रेषित करें। अदालत तय कर की याची की आयु 16साल से कम थी या अधिक।यदि अधिक थी को सुनवाई जारी रखें।

नाजिया नफीस

क्या है मामला?

एडवोकेट नाजिया नफीस के मुताबिक, प्रयागराज के थरवई थाने में एक अप्रैल 2017 को एफआईआर दर्ज की गई। जिसमें याची, उसके बड़े भाई व मां पर शिकायतकर्ता के भाई की पीटकर हत्या करने का आरोप लगाया गया। याची को गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया। मजिस्ट्रेट ने सत्र अदालत को प्रेषित कर दिया। पुलिस ने चार्जशीट दी। सत्र अदालत ने आरोप निर्मित कर दिया। इसके बाद याची की तरफ से अपराध के समय उसके किशोर होने का दावा किया गया। अदालत ने प्रधानाचार्य को बुलाया, पता चला याची की आयु 14 साल 3 माह 19 दिन थी। अदालत ने आयु निर्धारण न कर किशोर न्याय बोर्ड को भेज दिया। बोर्ड ने 15 मई 2025 को याची को किशोर घोषित कर जेल अधीक्षक को आदेश भेजा। किंतु रिहाई नहीं की गई। तो निर्बुद्धि को अवैध करार देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता ने यह बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। सरकारी वकील ने कहा मजिस्ट्रेट के आदेश से जेल भेजा गया था, इसलिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं है। कोर्ट ने तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार करते हुए याची की रिहाई का आदेश दिया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *