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सहायक उपकरणों पर अभी भी 5-12% टैक्स, विशेषज्ञ कहते हैं– ‘चलने पर टैक्स अन्याय’
GST 2.0: सरकार की महत्वाकांक्षी GST 2.0 नीति ने देश की 140 करोड़ जनता के लिए कई सामानों को सस्ता बना दिया है। टेलीविजन से लेकर टूथपेस्ट तक, बीमा पॉलिसी से लेकर दवाइयों तक सब कुछ अब कम दाम में मिल रहा है। लेकिन 2.68 करोड़ दिव्यांग आबादी के लिए तस्वीर अभी भी वैसी ही है। व्हीलचेयर, बैसाखी, कृत्रिम अंग और सुनने की मशीन जैसे जीवनावश्यक उपकरणों पर 5 से 12 फीसदी तक जीएसटी लगाया जा रहा है। दिव्यांग अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह चलने, देखने और सुनने पर टैक्स के समान है।
पहले फ्री, अब टैक्स
2017 में GST लागू होने से पहले ये सभी उपकरण वैट और एक्साइज ड्यूटी से मुक्त थे। अब मोटर व्हीलचेयर (डेढ़ लाख रुपए) पर 7,500 रुपए और तीन लाख के प्रोस्थेटिक पर 15,000 रुपए अतिरिक्त टैक्स देना पड़ता है। निप्मैन फाउंडेशन के संस्थापक निपुण मल्होत्रा कहते हैं, व्हीलचेयर कोई ऐड-ऑन नहीं है, यह जिंदगी है। इस पर टैक्स देना ऐसा लगता है जैसे अस्तित्व के लिए जुर्माना भर रहे हों।
सरकार का पक्ष
वित्त मंत्रालय का तर्क है कि 5 फीसदी की दर से निर्माताओं को इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलता है। इससे उत्पादन लागत कम हो सकती है। चेन्नई के कैलिडाई मोटर वर्क्स के सीईओ भार्गव सुंदरम बताते हैं, सैद्धांतिक रूप से इससे फायदा हो सकता है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर कंपनियां यह लाभ ग्राहकों तक पहुंचाती हैं या नहीं, यह उनकी मर्जी है।
बीमा का खोखला वादा
GST 2.0 में स्वास्थ्य बीमा को पूरी तरह टैक्स फ्री कर दिया गया है। लेकिन बीमा कंपनियां पहले से बीमार लोगों और मानसिक स्वास्थ्य की समस्या वालों को पॉलिसी देने से मना कर देती हैं। दिल्ली निवासी सुमित्रा देवी (45) कहती हैं, मेरे बेटे को जन्म से रीढ़ की हड्डी में समस्या है। कोई कंपनी इंश्योरेंस नहीं देती। GST फ्री बीमा का हमें क्या फायदा?
आर्थिक बोझ दोगुना
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दिव्यांग सदस्य वाले परिवारों को सामान्य जीवन यापन के लिए 17 फीसदी अधिक आय की आवश्यकता होती है। जब अतिरिक्त खर्चों को जोड़ा जाए तो गरीबी दर लगभग दुगुनी हो जाती है। मुंबई के राज शर्मा (42) बताते हैं, पत्नी के लिए हर महीने थेरेपी, दवा और उपकरणों की मरम्मत में 15,000 रुपए खर्च होते हैं। GST की वजह से यह बोझ और बढ़ गया है।
अंतर्राष्ट्रीय मानक
कनाडा, यूके और ऑस्ट्रेलिया में दिव्यांगों के सहायक उपकरण पूर्णतः कर मुक्त हैं। भारत में संसदीय स्थायी समिति ने भी इन उपकरणों को जीरो रेटिंग देने की सिफारिश की है। क्वांटम हब की विश्लेषक हर्षिता कुमारी कहती हैं, यह संवैधानिक अधिकारों का हनन है। अनुच्छेद 14 और 21 समानता और गरिमा की गारंटी देते हैं।
उद्योग जगत की राय
दिव्यांग उपकरण निर्माता संघ के अध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार कहते हैं, हमारा बाजार बहुत छोटा है। पूरे सेक्टर का टर्नओवर 2,000 करोड़ रुपए भी नहीं है। इसे टैक्स फ्री करने से सरकारी राजस्व पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
द्रमुक के दिव्यांग प्रकोष्ठ के राज्य सचिव दीपक नाथन कहते हैं, पार्टी सांसद कनिमोझी और पूर्व वित्त मंत्री पलानीवेल थियागा राजन इस मुद्दे को संसद में उठा चुके हैं। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने ट्वीट कर कहा है, दिव्यांगों की बुनियादी जरूरतों पर टैक्स लगाना अमानवीय है। अक्तूबर में होने वाली अगली जीएसटी काउंसिल की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की संभावना है। दिव्यांग संगठन देशव्यापी अभियान की तैयारी में हैं। नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड के अध्यक्ष जीतेंद्र सिंह कहते हैं, “हमारी मांग सिर्फ यह है कि हमारी जीवनावश्यक जरूरतों को लग्जरी न माना जाए।”
आंकड़ों की बात
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– भारत में 2.68 करोड़ दिव्यांग (2011 जनगणना)
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– असिस्टिव डिवाइस मार्केट: 2,000 करोड़ रुपए
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– व्हीलचेयर पर GST: 5%
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– कृत्रिम अंगों पर GST: 12%
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– सुनने की मशीन पर GST: 12%